धनुर्धर राम -तुलसीदास सुभग सरासन सायक जोरे॥ खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे॥ पीत बसन कटि, चारू चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोर…
और पढ़ेंश्री रामचँद्र कृपालु भजु मन -तुलसीदास श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्। नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।। कंदर्प अगणित अमित…
और पढ़ेंकदम मिलाकर चलना होगा - अटल बिहारी वाजपेयी जी हिन्दी कविता बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सि…
और पढ़ेंमौत से ठन गई! अटल बिहारी वाजपेयी जी हिन्दी कविता प्रसिद्ध कविता ठन गई! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्…
और पढ़ेंवह चिड़िया जो..... केदारनाथ अग्रवाल वह चिड़िया जो- चोंच मार कर दूध-भरे जुंडी के दाने रुचि से, रस से खा लेती है वह छोटी संतोषी चिड़िया नीले पं…
और पढ़ेंतुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद तुम्हारी आँखों का बचपन ! खेलता था जब अल्हड़ खेल, अजिर के उर में भरा कुलेल, हारता था हँस-हँस कर मन, आह रे व…
और पढ़ेंदो बूँदें -जयशंकर प्रसाद शरद का सुंदर नीलाकाश निशा निखरी, था निर्मल हास बह रही छाया पथ में स्वच्छ सुधा सरिता लेती उच्छ्वास पुलक कर लगी देखने धर…
और पढ़ेंअरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥ सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिख…
और पढ़ेंसब जीवन बीता जाता है -जयशंकर प्रसाद सब जीवन बीता जाता है धूप छाँह के खेल सदॄश सब जीवन बीता जाता है समय भागता है प्रतिक्षण में, नव-अतीत के तुषार-क…
और पढ़ेंउस दिन जब जीवन के पथ में- जयशंकर प्रसाद उस दिन जब जीवन के पथ में, छिन्न पात्र ले कम्पित कर में , मधु-भिक्षा की रटन अधर में , इस अनजाने निकट नगर म…
और पढ़ेंअब जागो जीवन के प्रभात- जयशंकर प्रसाद अब जागो जीवन के प्रभात ! वसुधा पर ओस बने बिखरे हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे उषा बटोरती अरुण गात ! अब जागो जीवन क…
और पढ़ेंआँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद आँखों से अलख जगाने को, यह आज भैरवी आई है . उषा-सी आँखों में कितनी, मादकता भरी ललाई है . कहता दिगन्त से मलय पव…
और पढ़ेंतुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद तुम्हारी आँखों का बचपन ! खेलता था जब अल्हड़ खेल, अजिर के उर में भरा कुलेल, हारता था हँस-हँस कर मन, आह रे व…
और पढ़ेंकोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद कोमल कुसुमों की मधुर रात ! शशि - शतदल का यह सुख विकास, जिसमें निर्मल हो रहा हास, उसकी सांसो का मलय वात ! …
और पढ़ेंकितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद कितने दिन जीवन जल-निधि में - विकल अनिल से प्रेरित होकर लहरी, कूल चूमने चल कर उठती गिरती सी रुक-रुक कर स…
और पढ़ेंअशोक की चिन्ता- जयशंकर प्रसाद जलता है यह जीवन पतंग जीवन कितना? अति लघु क्षण, ये शलभ पुंज-से कण-कण, तृष्णा वह अनलशिखा बन दिखलाती रक्तिम यौवन। जलने की…
और पढ़ेंआत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य …
और पढ़ेंभारत महिमा -जयशंकर प्रसाद हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार । उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार ।। जगे हम, लगे जगाने विश्…
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