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मेरे पथिक -सुभद्रा कुमारी चौहान

 मेरे पथिक -सुभद्रा कुमारी चौहान 



हठीले मेरे भोले पथिक!

किधर जाते हो आकस्मात।

 अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ,

सोच तो लो आगे की बात॥


 यहाँ के घात और प्रतिघात,

तुम्हारा सरस हृदय सुकुमार।

 सहेगा कैसे? बोलो पथिक!

सदा जिसने पाया है प्यार॥


 जहाँ पद-पद पर बाधा खड़ी,

निराशा का पहिरे परिधान।

 लांछना डरवाएगी वहाँ,

हाथ में लेकर कठिन कृपाण॥


 चलेगी अपवादों की लूह,

झुलस जावेगा कोमल गात।

 विकलता के पलने में झूल,

बिताओगे आँखों में रात॥


 विदा होगी जीवन की शांति,

मिलेगी चिर-सहचरी अशांति।

 भूल मत जाओ मेरे पथिक,

भुलावा देती तुमको भ्रांति॥

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