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स्वदेश के प्रति -सुभद्रा कुमारी चौहान hindi poem famous kavita


 स्वदेश के प्रति -सुभद्रा कुमारी चौहान 

आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूँ तेरा।
 तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा॥

 आ, उस बालक के समान
 जो है गुरुता का अधिकारी।
 आ, उस युवक-वीर सा जिसको
 विपदाएं ही हैं प्यारी॥

 आ, उस सेवक के समान तू
 विनय-शील अनुगामी सा।
 अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में
 कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥

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