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कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद hindi poem

 कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद


कोमल कुसुमों की मधुर रात !

 शशि - शतदल का यह सुख विकास,

 जिसमें निर्मल हो रहा हास,

 उसकी सांसो का मलय वात !

कोमल कुसुमों की मधुर रात !

 वह लाज भरी कलियाँ अनंत,

 परिमल - घूँघट ढँक रहा दन्त,

 कंप-कंप चुप-चुप कर रही बात.

कोमल कुसुमों की मधुर रात !

 नक्षत्र-कुमुद की अलस माल,

 वह शिथिल हँसी का सजल जाल-

 जिसमें खिल खुलते किरण पात .

कोमल कुसुमों की मधुर रात !

 कितने लघु-लघु कुडलम अधीर,

 गिरते बन शिशिर - सुगंध - नीर ,

 हों रहा विश्व सुख - पुलक गात .

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